Saturday, October 26, 2013
Friday, October 18, 2013
गजल -- फिर हर काम से पहले
जतन करना पड़ेगा आज ,फिर हर काम से पहले
खिलेंगे फूल राहों में , तभी इलहाम से पहले
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेंगी सुख भरी रातें
दुखों का अंत होगा फिर सुरीली शाम से पहले
बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
जरा दिल की सभी बातें ,लिखो कुहराम से पहले
बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
कभी पहचान भी होगी ,मेरे उपनाम से पहले
वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
तुम्हारा नाम ही आएगा ,मेरे नाम से पहले।
--- 28 /9 /2013
शशि पुरवार
खिलेंगे फूल राहों में , तभी इलहाम से पहले
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेंगी सुख भरी रातें
दुखों का अंत होगा फिर सुरीली शाम से पहले
बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
जरा दिल की सभी बातें ,लिखो कुहराम से पहले
बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
कभी पहचान भी होगी ,मेरे उपनाम से पहले
वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
तुम्हारा नाम ही आएगा ,मेरे नाम से पहले।
--- 28 /9 /2013
शशि पुरवार
Thursday, October 10, 2013
संत पहाड़
पहाड़ --
१
अडिग खड़ा १
शैल का अंक
नाचते है झरने
खिलखिलाते
७
पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
बसा है गाँव।
८
झुकता नहीं
लाख आये तूफ़ान
मिटता नहीं ।
Tuesday, October 8, 2013
माँ शक्ति है ,माँ भक्ति है। ………. !
माँ शक्ति है
माँ भक्ति है
माँ ही मेरा अराध्य
माँ सा नहीं है दूजा जग में
माँ से ही संसार
माँ धर्म है
माँ कर्म है
माँ ही है सतसंग
माँ सा नहीं है दूजा मन में
माँ , जीवन का आधार
माँ भारती है
माँ सारथी है
माँ ही मार्गदर्शक
माँ सा नहीं है दूजा पथ में
माँ ही गीता का सार
माँ सखा है
माँ ही सहेली
माँ ही प्रथम गुरु
माँ सा नहीं दूजा हिय में
माँ ममता का आकार
माँ निश्छल है
माँ संबल है
माँ ही रिश्तो की पूंजी
माँ सा नहीं दूजा घर में
माँ से ही संस्कार।
माँ भगवती
माँ अन्नपूर्णा
माँ ही दुर्गा का रूप
माँ सा नहीं है दूजा भू पर
माँ से साक्षात्कार
--- शशि पुरवार
१८ /९ / १३
Saturday, October 5, 2013
शुभ समाचार - खुशखबरी। ……
शुभ समाचार --- विश्व हिंदी संसथान और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के संयुक्त त्वरित राष्ट्र भक्ति गीत का परिणाम अब आ गया है और यह आपके समक्ष ---- खुशखबरी :- _/\_
मेरे पूरे परिवार , समस्त मित्रगण और उन सभी मित्रो का जो मेरी लिस्ट में नहीं है ,परन्तु सभी ने अपने अनमोल वोटिंग द्वारा मुझे विजेता बनाया . तो यह जीत सिर्फ मेरी जीत नहीं है …… आप सबकी भी जीत है . आप सभी का स्नेह और योगदान है इसमें , मेरी कलम की मेहनत और देशभक्ति के जज्बे को ताकत आपने ही प्रदान की है तो यह जीत मै आपसे भी साँझा करती हूँ। तहे दिल से सभी का शुक्रिया और आपको भी हार्दिक बधाई . :)
:----- शशि पुरवार
Thursday, October 3, 2013
कण कण में बसी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
उडती खुशबु रसोई की
नासिका में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय
प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
संतान के ,सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
अपने मन की पीर ,कभी
ना घाव कभी दिखलाये
खुशियाँ ,घर के सभी कोने में
तुमने ही भरी है माँ
कण कण में बसी है माँ .
माँ ने , दुर्गम राहो पर भी
हमें चलना सिखाया
जीवन के हर मोड़ पर भी
ज्ञान दीप जलाया
संबल बन कर ,हर मुश्किल में
संग खडी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
शांत निश्छल उच्च विचार
मन को खूब भाते
माँ से मिले संस्कार , हम
जीवन में अपनाते
जीवन की हर अनुभूति में
कस्तूरी सी घुली माँ
कण कण में बसी है माँ।
-- शशि पुरवार
Tuesday, October 1, 2013
आज से रस्ता हमारा और है। …। गजल
आज से रस्ता हमारा और है
साथ चलने का इशारा और हैचल रही ऐसी यहाँ पर आंधियाँ
ख्वाहिशों को तुमने तोड़ा था कभी
हार जाने का इजारा और है
भूल जायेंगे चलो दुख की निशा
प्यार के सुख का सहारा और है.
जीत लेंगे मुश्किलों की रहगुजर
22 / 9 /13
Monday, September 16, 2013
मन के भाव। ….
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें
७
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।
८
मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।
-- शशि पुरवार
Saturday, September 14, 2013
भारत की पहचान है हिंदी
भारत की पहचान है हिंदी
हर दिल का सम्मान है हिंदी
जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी
छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी
ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी
शब्दों का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी
सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान है हिंदी
क्षुधा ह्रदय की मिट जाती है
देवों का वरदान है हिंदी
वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी
गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी
भारत के जो रहने वाले
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार
हर दिल का सम्मान है हिंदी
जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी
छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी
ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी
शब्दों का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी
सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान है हिंदी
क्षुधा ह्रदय की मिट जाती है
देवों का वरदान है हिंदी
वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी
गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी
भारत के जो रहने वाले
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार
Friday, September 13, 2013
अक्स लगा पराया
१
मेरा ही अंश
मुझसे ही कहता
मै हूँ तोरी ही छाया
जीवन भर
मै तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।
२
जीवन संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गयी
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया
३
शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब .
४
चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।
५
चांदनी रात
छुपती परछाईयाँ
खोल रही है पन्ने
महकी यादें
दिल की घाटियों मे
घूमता बचपन।
६
जन्म से नाता
मिली परछाईयाँ
मेरे ही अस्तित्व की
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।
७
नन्हे कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया।
---- शशि पुरवार
Wednesday, September 11, 2013
ये नया जहाँ। .
१
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।
२
बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।
३
मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता
४
साथ साथ ये
बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।
५
मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे
६
प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे
७
दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश
८
हरे भरे से
रचे नया संसार
धरा का स्नेह
-- शशि पुरवार
Thursday, September 5, 2013
हृदय की तरंगो ने गीत गाया है। ।
हृदय की तरंगो ने गीत गया है
खुशियों का पैगाम लिए
मनमीत आया है
जीवन में बह रही
ठंडी हवा
सपनो को पंख मिले
महकी दुआ
मन में उमंगो का
शोर छाया है
भोर की सरगम ने ,मधुर
नवगीत गाया है।
भूल गए पल भर में
दुख की निशा
पलकों को मिल गयी
नयी दिशा
सुख का मोती नजर में
झिलमिलाया है
हाँ ,रात से ममता भरा
नवनीत पाया है।
तुफानो की कश्ती से
डरना नहीं
सागर की मौजों में
खोना नहीं
पूनों के चाँद ने
मुझे बुलाया है
रोम रोम सुभितियों में
संगीत आया है।
ह्रदय की तरंगो ने गीत गया है।
------- शशि पुरवार
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