उसके खोने का है गम
जो न था कभी अपना ,
इस बात का है मुझे एहसास
आज दिल फिर क्यूँ उदास ...?
इसी काबिल था यह शायद
रह जाये अकेले सफ़र में,
अब साया भी न मेरे पास
दिल में फिर भी बची
क्यूँ एक आस.
चंचल मन , तर्क पूर्ण बुद्दि के बीच
हो रहे भयंकर इस अंतरद्वन्द में ,
किसका अनुकरण करूं में
अंतत: हार निश्चित है ,
क्यूँ साथ है ....?
उलझ गयी हूँ इस सोच में
सोचती हूँ कुछ और सोचूँ ,
एक नयी सोच की तलाश है
आज दिल फिर उदास है .
उसके खोने का .............!
:- शशि पुरवार