Sunday, July 24, 2016

अाँख जो बूढ़ी रोई





खोई खोई चांदनी, खुशियाँ भी है दंग

सुख दुख के सागर यहाँ, कुदरत के हैं रंग
कुदरत के हैं रंग, न जाने दीपक बाती
पल मे छूटे संग, समय ने लिख दी पाती
शशि  कहती  यह सत्य, अाँख जो बूढ़ी रोई
ममता चकनाचूर, छाँव भी खोई खोई।  
      

जाने कैसा हो गया, जीवन का संगीत

साँसे बूढ़ी लिख रही, सूनेपन का गीत
सूनेपन का गीत, विवेक तृष्णा से हारा
एकल हो परिवार, यही है जग का नारा
शशि कहती यह  सत्य,  प्रीत से बढ़कर पैसा
नही त्याग का मोल, हुअा वक़्त न जाने कैसा।
शशि पुरवार 

Friday, July 15, 2016

सुधि गलियाँ





 स्वप्न साकार
मुस्कुराती है राहें 
दरिया पार। 
२ 
धूप सुहानी 
दबे पॉँव लिखती 
छन्द रूमानी। 
३ 
लाडो सयानी 
जोबन दहलीज 
कच्चा है पानी।  
धूप बातूनी 
पोर पोर उन्माद 
आँखें क्यूँ सूनी ?
५ 
माँ की चिंता 
लाडो है परदेश 
पाती, ममता। 
६ 
दुःखो को भूले 
आशा का मधुबन 
उमंगे झूले। 
७ 
प्रीत पुरानी 
सूखे गुलाब बाँचे 
प्रेम कहानी। 
८ 
छेड़ो न तार 
रचती सरगम 
 हिय झंकार। 
९ 
प्रेम कलियाँ 
बारिश में भीगी है 
सुधि गलियाँ। 
१० 
 आई जबानी  
छूटा है बचपन 
बद गुमानी। 
 -- शशि पुरवार 



Monday, July 11, 2016

मौसम से अनुबंध


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१ 
लहक उठी है जेठ की,  नभ में उड़ती धूल
कालजयी अवधूत बन, खिलते शिरीष फूल।
 २
चाहे जलती धूप हो, या मौसम की मार
हँस हँस कर कहते सिरस, हिम्मत कभी न हार.

लकदक फूलों से सजा, सिरसा छायादार
मस्त रहे आठों पहर, रसवंती संसार।

हरी भरी छतरी सजा, कोमल पुष्पित जाल    
तपकर खिलता धूप में, करता सिरस कमाल।

फल वृक्षों के कर रहे, मौसम से अनुबंध
खड़खड़ करती बालियाँ, लिखें मधुरतम छन्द।
 --  शशि  पुरवार

Thursday, July 7, 2016

क्यों न बहाएं उलटी गंगा....







क्यों न बहाएं उलटी गंगा

                भाई  कलयुग है। सीधा चलता हुआ मानव हवा में उड़ने लगा है।  टेढ़े मेढ़े रस्ते सीधे लगने लगे है। पहले घी निकालने के लिए अँगुली  टेढ़ी  की जाती थी।  आज ऊँगली सीधी नहीं होती है।  सरलता के सभी उपाय असफल  हो गएँ  है।  जूता सर पर चढ़कर राज करता है। टोपी हाथ में बैठी मक्खी को मारने और हवा  करने के  काम आती है।  जब दुनिया उलटी पुल्टी हो रही है तो भाई क्यों न हम उलटी  गंगा बहाए।

      आज कल देश में आरक्षण की गोली बहुत प्रसिद्द है। अंग्रेजी दवाईओं की इस देशी दवा के सामने क्या मजाल है, जो सर उठा सके। उच्च दर्जे की दवा भी चुल्लू भर पानी माँग रही है। देशी दवा आरक्षण ने जैसे सभी के  पाप गंगा बनकर धो डाले हों।  हमारे कर्णधार इस गोली का सदुपयोग करते रहतें हैं।  भाई प्राण जाये पर कुर्सी न जाए,  की तर्ज पर ढोल नगाड़े बज रहे हैं।
गोली खुले हाथों से बाँटी जा रही है। आरक्षण का आनंद  जहाँ देने वालों को उत्साहित कर रहा है वहीँ  इसे  खाने वाला  खाकर टुन्न  है।  आनंद की पराकाष्ठा कण कण में अपना प्रभाव दिखा रही है।  आरक्षण कोटा आज हिमालय के
शीर्ष पर विद्यमान है और कोटे के खिलाडी उस चोटी का पूर्ण आनंद ले रहे हैं। हिमालय में  गंगोत्री हमेशा शीर्ष से बहकर नीचे आती  हैं। भ्रष्टाचार की गंगोत्री भी शीर्ष से बहती है। तो आरक्षण की गंगोत्री नीचे से ऊपर  क्यों बहती है ?  आरक्षण सिर्फ निचली सतह से ऊपर  की सतह तक पहुँचाने  का प्रयास क्यों है ?
       गंगोत्री की धारा चोटी से नीचे तक आकर सबकी प्यास बुझाती है। लेकिन हमारे यहाँ आरक्षण  की गंगा उलटी  बह रही है ? आरक्षण का पानी नीचे से ऊपर कैसे सफलतापूर्वक चढ़ सकता है ? न्यूटन का सिद्धांत यहाँ कार्य नहीं कर रहा है।  यह नया सिद्धांत शायद कलयुगी न्यूटन ने ईजाद किया होगा ?

 आरक्षण का उल्टा रास्ता सफल कैसे  होगा ? यह शोध का विषय बन सकता है। आरक्षण की धारा जब लागू की जा रही है तो वह समान रूप से वितरित क्यों नहीं है ! आरक्षण करना ही है तो समान रूप से  उसे नियम कायदे में बाँध
दीजिये। कोटे के मरीज का इलाज कोटे के डाक्टर से करवाएं।  धान्य- सब्जी मंडी, बिजली -पानी,  नौकरी -शादी, अस्पताल,  रोजमर्रा की वस्तुओं के साथ -साथ हवा को भी आरक्षित करें। कायदा तो यही कहता है आरक्षित लोग, आरक्षित जगह से राशन पानी लें।  अनारक्षित अपनी सेवा टहल अनारक्षित जगह से कर लें। वह दिन दूर नहीं है जब ताज़ी सब्जी  आरक्षित कोटे के लिए व बासी सब्जी अनारक्षित के  लिए सुरक्षित होगी। सेकंड हैंड सीट और  पुराना ग्रेड का माल अनारक्षित के लिए उपलब्ध होगा।  आरक्षित चमचमाती रौशनी से नहाएंगे व अनारक्षित  का भविष्य जनरल डिब्बे में खुद को तलाश कर रहा होगा। बीमारी भी आरक्षित होनी चाहिए उसे भी  अपना कोटा देखकर मानव  का चुनाव करना होगा। जैसे शक्कर, ह्रदयघात जैसी बीमारी का पेटेंट बनाकर उसे कोटे में फिक्स करें।  शिक्षा में, सेवा में, अभियंत्रण में, सेतु निर्माण तक में आरक्षण है  तो  लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति, पीएम, सी एम् की कुर्सी पर भी
आरक्षण क्यो नही है  ?  क्या वह किसी और दुनिया सम्बन्ध रखते हैं ? मंत्री, लोकसभा, प्रधानमन्त्री , राष्ट्रपति, सांसद, कानून आदि भी आरक्षण के  घेरे में आने चाहिए। आरक्षण तब ही सफल होगा एवं  गठबंधन मजबूत।

        हाल ही में शिक्षा के लिए बच्चे का दाखिला करवाना था तो  ज्ञात हुआ आरक्षित कोटा भरने के बाद ही आपकी सुनवाई होगी। हम नियम कायदे से बँधे हुए है। आपका बच्चा भले ही उच्च अंको से पास हुआ है किन्तु हमें तो
आरक्षित सीट ही भरनी है।  भले ही अंक न्यूनतम क्यों न हों। बात यहाँ सिर्फ आरक्षण की है लेकिन उसमे भी एक कोटा आधी आबादी के लिए रखा गया है। जहाँ आधी आबादी तो गायब ही है।  क्यूंकि कली को फूल बनने से पहले तोड़ने का रिवाज आदिकाल से बदस्तूर चला आ रहा है। कलयुग में रावण की संख्या भी असीमित होकर सीता हरण के लिए कदम  कदम पर अपना जाल बिछा रही है। हमें ऐसा प्रतीत  हुआ जैसे हम सजा याफ्ता मुजरिम हैं।  कोर्ट में पेशी के बाद ही  फैसला होगा।  कोटे  को कोटा कहना भी गुनाह माना जाने लगा है।  कब धारा ४२० लग जाए  और हम सरकारी मेहमान बने।
          भारत में कोटे की ऐसी मिसाइल तैयार होंगी जो भविष्य का  तख्त  पलटने और  चाँद को जमीं पर लाने की कुबायत  कर सकती हैं।  हवा भी इजाजत लेकर कहेगी कोटा  देखकर  साँस लो।  और जाति देखकर श्वास -उच्छ्वास करो।
आरक्षण कोटे को आरक्षण ने अली बाबा का चिराग दे दिया है जिसे रगड़ रगड़ पर हर ख्वाहिश मिनटों में पूरी हो जाती है। तभी तो देश  में उलटी गंगा बहेगी। गंगा  में उठने वाला तूफ़ान हिमालय  की चोटी पर जाकर कौन सा चित्र बनाएगा
?
                    वैसे पूरे भारत को ही कोट पहना देना चाहिए।  भविष्य में भारत आरक्षण कोटे के नाम से प्रसीद्ध होगा।  और वह दिन दूर नही जब आरक्षित कोटे वाले इतने समर्थ हो जायेंगे कि अनारक्षित लोगों को आरक्षण का कोटा
बाँटने लगेंगे।   फिर उलटी गंगा बहने लगेगी। हर कोई अपनी मूछों पर ताव देने लगेगा । वे भी जिनके मूँछे  है और वे भी जिनके मूँछे नही है। बस दिक्कत में वे ही रहेंगे जिनके पेट में दाढ़ी है । तो बोलो --   आरक्षण बाबा की  जय हो !

           --- शशि  पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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