Wednesday, March 25, 2015

आदमी ने आदमी को चीर डाला है।




चापलूसों का
सदन में बोल बाला है
आदमी ने आदमी
को चीर डाला है

आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें, ज्यों 
हों वही सच्चे.
राजगद्दी प्रेम का
चसका निराला है

रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परोसा गया
खट्टा रसाला है

आस खूटें बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
-- शशि पुरवार

Thursday, March 19, 2015

पहचान


वाह अपना लंगोटिया यार कितना बड़ा आदमी हो गया है, जानी मानी हस्ती है, अपने को कैसे भूल सकता है, जब उसके बुरे दिन थे तब कितनी मदद की थी। महाशय दम्भ में भरे हुए बचपन के सखा से मिलने गए, साथ में एक दो चम्मच को भी ले गए , थोड़ा रॉब तो झाड़ दिया जाए ……… अपनी तो गाडी निकल पड़ेगी।

पर वहां तो चमचों की लाइन लगी पड़ी थी, अब गुड की ढेली आ गयी है तो मक्खियाँ तो भिनभिनायेंगी।
ऐसे में इन महाशय को कौन पूछता, पर महाशय आज मिलने का विचार का साफा पहनकर ही बैठे थे।

बड़े बड़े कद वाले दोस्त आये, सबसे मिले फिर महाशय से कहा - कहो भाई कैसे आना हुआ, क्या काम है।

महाशय बड़े खुश---- अपने यार ने पहचान लिया। पीठ पर धौल मालकर गले लग गए --- यार केशु कैसा है?

पर यह क्या --- अरे अरे कौन हो भाई -- ये क्या कर रहे हो --- जरा सा मीठा क्या बोल लिया -- सर पर बैठे जा रहे हो।
" तुम मुझे नहीं पहचान रहे ,कैसे भूल सकते हो " महाशय अचकचा गए.

तुम जैसे लोग बेफ़्कूफ होतें है, जब काम था, अब काम ख़त्म , हमसे फ़ायदा उठाने की सोचना भी मत --- तुमने काम किया तो हमने भी तुम्हारा काम किया हिसाब ख़त्म। …।

कड़कती आवाज ने निर्देश दिया ---चौकीदार आगे से ध्यान रखना ऐसे लोग अंदर नहीं आने चाहिए।
चढ़ते सूरज को हर कोई सलाम करता है।
-- शशि पुरवार

Thursday, March 5, 2015

भंग दिखाए रंग - होली है




होरी आई री सखी ,दिनभर करे धमाल
हरा गुलाबी पीत रंग , बरसे नेह गुलाल .1

द्वारे  पे गोरी खड़ी ,  पिया  गए परदेश
नेह सिक्त  पाती लिखी ,आओ पिया स्वदेश2

भेद भाव से दूर ये  ,होरी का त्यौहार
डूबा जोशो जश्न में , यह सारा संसार 3

होरी के  हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो  सामने ,फेको उस पर रंग .4

अम्मा से बाबू कहे , खेलें  होरी  आज
कहा तुनक कर उम्र का , कुछ तो करो लिहाज .5

होरी की अठखेलियाँ , पकवानों में भंग
बिना बात किलकारियाँ , भंग दिखाए रंग 6


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 कुण्डलियाँ
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने,  उस पर फेको  रंग
फेको उस पर रंग , नीले पीले गुलाबी
घेरो  सब चहुँ ओर, यह टोली है नबाबी
मस्ती का उन्माद , संग मित्रों के ठिठोली
जोश जश्न उल्लास , खेलो प्रेम की होली .

हाइकु -


होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी 
सखियाँ न्यारी


 मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे

प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली

होली की मस्ती
प्रेम का  है खजाना
दिलों की बस्ती


चढ़ा के भंग
मौजमस्ती संग
बजाओ चंग

    -----  शशि पुरवार
आप सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की हार्दिक रंग भरी शुभकामनाएँ

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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