Wednesday, April 9, 2014

गजल -- मेरी साँसों में तुम बसी हो क्या।



मेरी साँसों  में तुम बसी हो क्या
पूजता हूँ जिसे वही  हो क्या

थक गया, ढूंढता रहा तुमको
नम हुई आँख की नमी हो क्या

धूप सी तुम खिली रही मन में
इश्क में मोम सी जली हो क्या

राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
मौन संवाद की धनी हो क्या

आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर  भी अनमनी हो क्या

लोग कहते है बंदगी मेरी 
प्रेम ,पूजा,अदायगी  हो क्या

दर्द बहने लगा नदी बनकर
पार सागर बनी खड़ी हो क्या

जिंदगी, जादुई इबारत हो
राग शब्दो भरी गनी हो क्या

गंध बनकर सजा हुआ माथे
पाक चन्दन में भी ढली हो क्या
-------- शशि पुरवार

23 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-04-2014) को "टूटे पत्तों- सी जिन्‍दगी की कड़ियाँ" (चर्चा मंच-1578) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर ग़ज़ल शशि पुरवार जी ... बहुत बधाई ..
    http://kavineeraj.blogspot.in/2014/04/blog-post_9.html

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल बह्न शशि जी । हार्दिक बधाई !

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  4. बहुत खूब बधाई..

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  5. राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
    मौन संवाद की धनी हो क्या !

    बहुत खूब …. मंगलकामनाएं आपको !

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  6. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...सभी अशआर बहुत उम्दा...

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  7. वाह ! बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! हर शेर मन को स्पर्श करता हुआ सा ! बहुत खूब !

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  8. हर शैर अपना अर्थ और भाव लिए मक्ते का विस्तार लिए खूबसूरत ग़ज़ल कही है :

    मेरी साँसों में तुम बसी हो क्या
    पूजता हूँ जिसे वही हो क्या

    थक गया, ढूंढता रहा तुमको
    नम हुई आँख की नमी हो क्या

    धूप सी तुम खिली रही मन में
    इश्क में मोम सी जली हो क्या

    राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
    मौन संवाद की धनी हो क्या

    आज खामोश हो गयी कितनी
    मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या

    लोग कहते है बंदगी मेरी
    प्रेम ,पूजा,अदायगी हो क्या

    दर्द बहने लगा नदी बनकर
    पार सागर बनी खड़ी हो क्या

    जिंदगी, जादुई इबारत हो
    राग शब्दो भरी गनी हो क्या

    गंध बनकर सजा हुआ माथे
    पाक चन्दन में भी ढली हो क्या
    -------- शशि पुरवार

    चर्चा भी बेहतरीन सजाई है शास्त्रीजी ने ,बधाई सेतु संयोजन और समन्वयन के लिए।

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  9. har shanka ka samadhan chahti gazal bahut hi sunder hai .sashi ji apako badhai .
    pushpa mehra.

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  10. आपकी कलम में दर्द जादू अनुभूति प्रेम सब कुछ भरा है ..... आभार

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  11. बहुत ही खूबसूरत गज़ल ...

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  12. ☆★☆★☆



    धूप सी तुम खिली रही मन में
    इश्क में मोम सी जली हो क्या

    आज खामोश हो गयी कितनी
    मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या

    ओहो हो...
    क्या कहने ! क्या कहने !
    वाहवाऽह…!

    आदरणीया शशि पुरवार जी
    मत्ले से मक़्ते तक शानदार ग़ज़ल है...

    सुंदर रचना के लिए साधुवाद
    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. आपके गजल का जबाब नहीं ......

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  14. शशि जी, सुंदर गजल की पेशकश ...

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  15. खूबसूरत ग़ज़ल बधाई आपको |

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