Thursday, July 18, 2013

बहता पानी ...!



बहता पानी
विचारो की रवानी
हसीं ये जिंदगानी
सांझ  बेला में
परिवार का साथ
संस्कारों की जीत .




बरसा पानी
सुख का आगमन
घर संसार तले
तप्त ममता
बजती शहनाई
बेटी हुई पराई .


हाथों  में खेनी
तिरते है विचार
बेजोड़  शिल्पकारी

गड़े आकार
आँखों में भर पानी
शिला पे चित्रकारी .



जग  कहता

है पत्थर के पिता
समेटे परिवार  
कुटुंब खास 
दिल में भरा पानी

पिता की है कहानी .
 --------- शशि पुरवार
 १३ ,७ .१ ३

11 comments:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 20/07/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बृहस्पतिवार (18-07-2013) को में” हमारी शिक्षा प्रणाली कहाँ ले जा रही है हमें ? ( चर्चा - 1310 ) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. संवेदनपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।

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  5. सुंदर प्रस्तुति साधुवाद

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  6. सुंदर भाव...

    एक नजर इधर भी...
    यही तोसंसार है...



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  7. बहुत ही सुंदर.

    रामराम.

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  8. बहुत उम्दा,संवेदनशील सृजन,,,वाह !!!

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  9. बिखरे हुए चिन्तन क्षण अपने शब्दों में समा लिए आपने और कविचा रच गई!

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  10. खुबसूरत रचना.....

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